Sunday, April 24, 2011

क्यों चाहा उसने उस शिकारी को....
जिसने बिखेरा उसके संसार को....
तबाह  कर दी उसने उसकी बस्ती....
फिर भी वो चाहती उसकी हस्ती...
उसने भी सोचा कभी तो वो बदलेगा....
शायद मेरा प्यार वो समझ लेगा.....

 वो न जानती थी ....
की वो न बदलेगा ....
पर उसे भी  मिटा देगा ...
क्यों चाहा मेने उस शिकारी को..

Thursday, April 14, 2011

छोटा सा था सफ़र 
जिसमे मिला न हमसफ़र  
तड़प उठती है आज यादे 
जब याद आती है बीती बातें 
सोचा न था की कोई ऐसा होगा 
सामने प्यार और पीछे धोखा होगा....
 क्या क्या न किया सबके लिए
क्या धोखा  मिले इसलिए 
न आज तक किसी ने समझा मुझे
न जाना किसी ने मुझे 
जब भी पीछे मुढ़ के देखा
हमेशा अपने साया ही देखा

छोटा सा था सफ़र 
जिसमे मिला न कोई हमसफ़र 
 जब काम होता आते सब पास 
जब ख़तम होता तो कहते अब बस 
इस भीड़ में अकेली ही पाया खुद को
अज तक समझा न पाई खुद को...................