Wednesday, January 19, 2011

बसों में बढ़ती भीड़ के चलते बढ़ी परेशानिया

 
बसों में भीड़ से अक्सर परेशानिया होती है और सबसे ज्यादा  परेशान होती है लडकिया.. में रोज बस से ही कॉलेज आती व जाती हूँ.. हमेशा बस में चढ़ने के लिए दरवाजा पीछे से ही खुलता है .. पर वहां से लडकियों के लिए चढ़ना बेहद मुश्किल हो जाता है.. क्युकि सारे आदमियों की भीड़ लग जाती है जिससे लडकियों का चढ़ना में  मुशकिल होती  है.. कोई चालक अगर आगे का दरवाजा खोल दे तो हम लडकिया उसेमें चढ़ जाती .. नही तो वही पे खड़े रह कर  घंटो  इंतज़ार करना पढता है... जिसके चलते कई बार देरी भी हो जाती है.. पर करे भी तो  क्या अगर उस भीड़ में चढ़ भी जाए तो कई बार छेड़खानी का शिकार होना पढता है लडकियों  को.. जो कि ज्यादा बुरा है.. और अक्सर भीड़ में ऐसा होता ही है..
                          इन नई बसों के चलते और एक परेशानी सामने आयो है.. जेसा कि हम सब जानते है कि नई low  floor  बसों के दवाज़े नये ढंग के है.. कई बार तो लोग उस दवाज़े में फस जाते है.. कई बार चोट भी लग जाती है.. दरवाज़े के बीच में फस जाने से बहुत समस्या हो जाती है कई बार चालक उसे खोलता है और कई बार नही भी खोलते जिसके चलते .. लोग परेशान हो जाते है.. कई बार तो  DTC  बस  वाले बस स्टॉप  पर नही भी रोकते.. जब भीड़ ज्यादा होती है तो अक्सर वो ऐसा ही करते है.. अपनी मर्जी से करते है जो उन्हें करना होता है..  आज कल ब्लू लाइन के हटने से DTC वलोके भाव बढ़ गये है.. इन्हें रोकना आवश्यक है.. क्युकि इसके कारण आम जनता को काफी परेशानी होती है..और  इन बसों में बहुत गुटन भी होती है.. सारे खिड़की दरवाजे अगर बंद हो जाय तो लोगो का इसमें दम ही गुट जाए... कई बार नुई सुविधाऊ के आने से भी मुश्किलें बढ़ जाती है..        


                          चली है नई बसे ,, 
                            जिसमे है लोग फसे..
                                कलर है इसके हरे,, लाल,, पर्पल..
                                    और पहूचाती है लोगो को कई दुःख हर पल...
                              

लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा का एक सितारा

भारत की एक अनमोल रतन लता मंगेशकर जिनका जन्म  28  सितम्बर 1929  को हुआ था ... भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान हमारे  भारतीय सिनेमा में एक अछी गायिका के रूप में हुई है.. उनकी अपनी बहन आशा  भोंसले  भी उन्ही की तरह फिल्मो में गाती  है.. लता मंगेशकर  ने  अपने पिता दीनानाथ मगेश्कर से सीखना शुरू किया था..उन्होंने सिर्फ चार साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था..मात्र 7 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहेला संगीत  कार्यकम  प्रस्तुत किया ..13  साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया..फिर उन्होंने अपनी घर की जिम्मेदारी भी उठाई.. पिता की मृतु के कुछ दिन बाद ही उन्होंने एक मराठी फिल्म में काम किया..  1947  में उन्होंने आपकी सेवा नमक फिल्म में पहेली बार गाना गाया.. फिर धीरे धीरे उन्होंने फिल्मो में गाना गाने की लाइन लगा दी..फिर उन्होंने मजबूर,, अंदाज़,, बाजार,, बरसात और न जाने किस किस फिल्म में गाना गया.. तब से लेकर आज तक वो गाती ही आ रही है.. 82   साल की उम्र में भी उनकी आवाज बहुत ही अछी व मधुर है.. उन्होंने अपनी इसी आवाज के चलते न जाने कितने अवार्ड्स जीते है.. आज भी यह काबिले तारीफ है..इन्होने आशा भोंसले,, किशोर कुमार,,गुजर,,अनु मालिक और कई गायक व गायिका ,, के साथ गाना गया है..तथा मुझे भी लता जी बेहद पसंद है.. में इनके गाने बचपन से सुनती आ रही हूँ.. इनका देश भक्ति गीत वन्दे मातरम बेहद पसंद है.. और लता जी आज भी लोगो के दिलो में बसी हुई ह और हमेशा बसी रहेंगी.. 


लता मंगेशकर को मिले पुरस्कार

  • फिल्म फेर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
  • राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990)
  • महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)
  • 1969 - पद्म भूषण
  • 1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड
  • 1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार
  • 1993 - फिल्म फेर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार
  • 1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार
  • 1999 - पद्म विभूषण
  • 1999 - ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न"
  • 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार
  • 2001 - महाराष्ट्र भुषण

में चाहती हूँ की इसी तरह उन्हें पुरस्कार मिलते रहे और वो हमारे देश वासिओ के लिए गाती  रहे.. और हमे उनकी सुरीली आवाज़ सुनने का सोभाग्ये मिलता रहे...... 

Tuesday, January 18, 2011

MCdonald ki masti.......

MCdonald हम सभी इस  नाम से अच्छी  तरह परिचित है ..जी हाँ आज कल तो यहाँ युवा पीढ़ी की भीड़ सी  लगी रहती है... जिसे देखो बस MC d  कहते रहते है.. अरे आखिर यह भी तोह जान लो की इसकी शुरुआत कब हुई.. कौन था वो जिसकी वजह से हम सब को MCd मिला जहाँ जा कर हम आज कल बहुत मस्ती  करते है .. चलो तो अब में आपको यह बताती हूँ की आखिर इसकी शुरुआत केसे हुई..  दो भाई यानि की डिक और मैक मेक्डोनाल्ड जो की एह होटल चलते थे.... फिर उनकी मुलाकात रे क्राक व  से हुई जो की एक सेलसमैन  थे..फिर तीनो ने  एक साथ एक होटल में काम किया ..फिर वहां वो लोगो को  हेमबर्गर  खिलते थे और साफ़ सफाई करते थे..   फिर एक दिन अचानक यह सब देख कर रे क्राक के मन में विचार आया की क्यों न ऐसा होटल पुरे अमेरिका में खोला जाये .. उन्होंने यह बात दोनों भाईयो को बताई पर इतना केसे होगा यह सब सोच के वो चुप रहे .. पर रे क्राक ने इस बात को उन दोनों को समझाया  और 1961 MCdonald के सरे अधिकार 2 .7  मिलिओं में खरीद लिए .. फिर क्या था उन्होंने MCdonald में अपने तरीके से काम किया और पूरी अमेरिका में लोगो को इसका शौक़ीन बना दिया.. पर इन्होने हमेशा सफाई का खास ध्यान  रखा .. सिर्फ 7 सालो में इन्होने अमेरिका में 1000  MCdonald खोल दिए...  और धीरे धीरे यह अमेरिका से बहार निकला और कई देशो में छा गया .. भारत,, चीन ,,ऑस्ट्रेलिया और अन्य कई देशो में फ़ेल गया .. 1984   में रे  क्राक की मृत्यु हो गयी पर उसके बाद भी यह चलता रहा और  कई जगह फेलता चला गया ..
                 आज तो दिल्ली में ही लगभग हर  कालोनी में एक न एक म्च्दोनाल्ड है.. जिसमे युवौ की भीड़ लगी रहती है.. बच्चे बूढ़े सभी इस बेहद पसंद करते है.. इसके दाम भी सबके बजट में ही आ जाते है.. और साफ़ सफाई के मामले में भी यह बहुत ही अच्छा  है..  तथा इसके दीवाने दिन पर दिन बड़ते जा रहे है .. और इसमें तो कई चीजे मिलने लग गयी है.. कोल्ड्रिंक,, बरगर,, MCpuf ,, ice cream ,, french fries ,, और न जाने क्या क्या मिलने लगा है.. कितने लोग यहाँ अपना जन्मदिन मनाते है दोस्तों को पार्टी देते है.... अच्छा ही हुआ की रे चुप नही बेठे और अपनी सोच को आगे बढाया नही तो MCdonald ही न होता .. मुझे तो यह सोच के ही अजीब लग रहा है अगर वो अपनी सोच पर कायम नही नोट तो क्या होता.....


                                           

Sunday, January 16, 2011

कार्टून की दुनिया........


जेसा की हम सब जानते है.... कार्टून की दुनिया  के बेताज बादशाह में सबसे मशहूर नाम डिस्नी वाल्ट का है जिनका जन्म  5  दिसंबर को हुआ था..
 इन्होने 22 साल उम्र में हालीवुड में कार्टून स्टूडियो खोला था.. इन्होने ही थीम पार्क को खोल कर  मल्टीमीडिया की शुरुआत  की थी.. इनकी यह शुरूआत खासकर के लिए बच्चो के मनोरंजन के लिए थी.. फिर वाल्ट ने इसे और 1928 में उन्होंने मिकी माउस नमक के किरदार बनाया और लोगो के सामने उसे बोलता हुआ पेश किया.. जिससे लोग काफी प्रभावित हुए और काफी मनोरंजन भी हुआ .. 
          वाल्ट ने 1937  में पहली बार एनिमेटिड फीचर फिल्म   "स्नो व्हाइट "   बनाई.. जिसे लोगो ने काफी पसंद किया उसके लिए उन्हें आस्कर भी मिले.. उन्होंने अपनी जिंदगी में 32 आस्कर जीते.. उन्होंने  लाखो लोगो के चहरे पर ख़ुशी सजाई..



     उन्होंने अपने कार्टून के जरिये बच्चो  को काफी ज्ञान दिया.. फिर धीरे धीरे उन्होंने अपने कई और काल्पनिक किरदार बनाये जेसे डोनाल्ड डक,, प्लूटो,, मिनी और मिकी  आदि .. उनके काल्पनिक किरदार की लिस्ट फिर बड़ती ही गयी.. फिर वो टेलीविजन पर छाने लगे..   18 जुलाई 1955 में डिजनीलैंड पार्क का उद्घाटन  हुआ..फिर उन्होंने 1964 में एपकाट  सेंटर  खोला जिसकी शुरूआत  1971  में फ्लोरिडा में हुई..  परन्तु तब तक वाल्ट हमारे बीच में नही रहे..1965  में उन्हें कैंसर की बीमारी बताई गयी.. जिसके कारण वो ज्यादा नही जी पाए और 1966 में उनकी मृत्यु हो गयी.. पर जाते जाते वो अपना कार्टून का खजाना हमारे लिए छोड़ गये..
             उनके जाने  के बाद भी कार्टून की दुनिया आगे बदती गयी.. और धीरे धीरे उसका विकास होता रहा.. और  कई फीचर  फिल्म व कार्टून बने.. और आज कल तो रोज ही कोई न कोई नया किरदार व कार्टून बन रहे है.. कार्टून  फीचर  की तो अब लाइन सी लग गयी है.. परन्तु आज भी वाल्ट को काफी याद किया जाता है क्युकी इन्ही की वजह से हमे एक काल्पनिक दुनिया मिली.. जिसकी दिन प्रतिदिन तरकी होती जा रही है.....

Saturday, January 15, 2011

ठण्ड से राहत मिल गयी पर इस प्याज़ से नही..



ठण्ड ने तो अपना जलवे दिखाना बंद कर दिया........जिसके चलते कई लोगो की भी मौत हुई पर.........ना जाने प्याज़ के दामो के चाक्कर में कितने लोगो की भूक से जाने जाएगी.. गरीब लोग अपना पेट बरने के लिए कभी कभी प्याज़ से भी रोटी  खाते है ..पर अब तो उन्हें प्याज़ भी नसीब नही हो पा रही.......आखिर इस समस्या का समाधान कब निकलेगा...सरकार को गरीबो के लिए कुछ तो सोचना चाहिए .. क्या आपको पता है प्याज़ के होलसेल  रेट मात्र 15 से 25   है ..परन्तु  हमारे  पास आते आते यह इतनी महगी केसे हो जाती है..दरसल प्याज़ खेतो में से तो 15 या 20 रूपए आई .. पर गाँव से मंडी तक आते उसके रेट 25 से 30   हो जाते  है ... फिर वहां से रिलईस फ्रेश,, नेफेड ,, 6टेन,, व छोटी छोटी मंडियों में आते ही इनके दाम लगभग दुगने हो जाते है फिर इनका दाम 50 se 60 हो जाता है... और फिर बढाती है आंधादुन्ध महगाई.. और  अगर किसी कारण वश अगर  पूर्ति को रोक दिया जाए जेसा कि हाल में  लासलगाव से प्याज़ के 150 ट्रक भेजे जाते थे पर  उस वक्त  सिर्फ 10 ही ट्रक भेजे जा रहे  थे.. जिसके चलते प्याज़ के दाम आसमान पे चढ़ गये थे.. और पेट्रोल के दाम भी सी बेच बड़ा दिए गये..जिससे कि प्याज़ और महगी होना तो लाज़मी ही था.. हलकी यह सब तो मांग और पूर्ति का एक खेल था जिसे सरकार खेल रही थी..
                           
                             या यह कहिये यह तो  बस एक जरिया था लोगो को डराने का और
उनसे पैसा कमाने का.. सबने तो ठण्ड से मरने का नाम ले लिया par ना जाने कितने मासूम लोग इसी मेहगाई  के मार से मरे होंगे.. कितने दिन उन्हें खाना नही मिला होगा... और ना जाने कितने लोगो को  एक वक्त का खाना खाने के लिए ना जाने कितने पापड़ बेलने पढ़ते होगे ओया तब भी उन्हें और उनके परिवार को ठीक से खाना नही मिलता होगा.. खेर सरकार को इससे क्या वो तो बस अपनी ही धुन में है........

Friday, January 14, 2011

AIDS- Acquired Immunodeficiency Syndrome


 यह एक संक्रमण है बीमारी है, जो कि असुरक्षित यौन सम्भंधो,,.. और संक्र्क़मित खून,,.. संक्रमित सुइंयो व गर्भवती माँ से नवजात शिशु को होता है..  
 आज कल न जाने कितनी बीमारियासामने आ रही है. उसमे से कईयों के इलाज संभव है और कईयों के नहीं. पर आज हम बात करेंगे एक ऐसी बीमारी के बारे  में जिसका इलाज उसकी जानकारी है यानी कि एड्स..


                  परन्तु लोगों कि इस विषय के बारे में अधिक जानकारी नहीं है जिसके कारण लोग इस बीमारी कि चपेट में आ जाते है.. आज के दौर में हमे इस खतरनाक बीमारी से सावधान रहना चाहिए तथा इस बीमारी के बारे में हमे जागरूकता फैलानी चाहिए.. आजकल इस बीमारी के बारे में जानकारी देने के लिए कई संस्थानों द्वारा जागरूकता फैलाई जा रही है तथा कई नुक्कड़ व नाटको के जरियों इस बिमारी के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है..

कई लोगों का मानना है कि यह बीमारी साथ खाना खाने से,, हाथ मिलाने से,, साथ में बाथरूम इस्तेमाल करने से तथा मछर के काटने से फैलती है परन्तु यह सब तथ्य मनिन्ये नहीं है.. इन सब कारणों से यह बीमारी नहीं फैलती है.. अंत में सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि इस बीमारी कि जानकारी ही इसका इलाज है.....

Wednesday, January 12, 2011

राष्ट्रयेमंडल खेलो के घोटालो का असर पढ़ा voluntears पर.......

राष्ट्रियेमंडल खेलो में घोटालो की वजह से परेशान  volunteer ... घोटालो का इलज़ाम लगा कलमाड़ी पर उसके चलते  कई  volunteer  को भी सुननी पढ़ती है बातें .......जेसे की में आपको बताना  चाहती हूँ.. में भी राष्ट्रियेमंडल खेलो में volunteer थी और मेने निशुल्क और अपनी ख़ुशी से वहः एक महीने काम किया.....और वहां से मुझे जूते,, जुराब,,और अन्य कई चीज़े मिली.. मेने वहां एक महीने दिल लगा कर और  अपने कालेज को छोड़ कर वहां काम किया........ और जहाँ तक में मानती हूँ की हम  volunteer ने इन खेलो को काफी हद तक  कामयाब बनाया  है.. परन्तु खेलो के ख़तम होने के बाद कलमाड़ी पर लगे इल्जामो के चलते हम volunteer का  उन चीजो का प्रयोग करना हमारे लिए नामुमकिन सा हो गया है........ क्युकि जब भी हम उन चीजों का प्रयोग करते है लोग हम पर ताना कसने लगते है की तुम लोगो ने भी कलमाड़ी की तरह ही देश को लुटा है... हमे इन खेलो से न तो पैसा मिला न ही कोई सम्मान.. मिला भी तो क्या ? .. घोटालो का इल्जाम.. में तो  बस  यह जानना चाहती हूँ की कलमाड़ी की सजा हमे क्यों मिल रही है... में  सबको यह बताना चाहती हूँ की हम volunteers ने सिर्फ मेहनत  से काम किया है उनका इन घोटालो से कोई सम्बन्ध नही है.. 
                                 घोटालो से भरा खेल,,
                                    कलमाड़ी हुआ फेल......
                                
         

Friday, January 7, 2011

Hindi,English ya hinglish.........

हिंदी भाषा हमारी राजभाषा है..जिसे सब आजादी के समय से बोलते आ रहे है.. संविधान ने 14  सितम्बर 1949 में  हिंदी को राजभाषा बनाया था.. हमारे देश में कई भाषाए है पर हिंदी उन सब से ज्यादा  महत्वपूर्ण  है.. क्योंकि  हिंदी को ही राजभाषा  का औहदा मिला हुआ है..जिसके चलते सरकारी काम काज हिंदी में  होते है..क्योंकि   किसी भी भाषा को राजभाषा बनाने का काम सरकार का होता है..देश आजाद होने के बाद से अब तक हमारे देश में कई हिंदी फिल्मे,, अखबारों ,,किताबे छपती आ..यहाँ तक की हिंदी भाषा अब विदेशो में भी सीखी जा रही है... परन्तु पिछले एक दशक से हिंदी  की स्तिथि भारत में दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है.. नई पीढ़ी हिंदी भाषा को अपने मन मुताबिक इस्तेमाल कर रही है..आज की पीढ़ी ने तो हिंदी को बदल कर हिंगलिश कर दिया है.. और इसी नई भाषा का प्रयोग धडड्ले से हो रहा है..चाहे वो बोल चाल में हो ,, फिल्मो,, या अखबारों में हो..सब जगह हिंगलिश का ही बोलबाला है..जहाँ देखो बस इसी भाषा का बोलबाला है........
  जेसे अखबारों में  निरंतर  हिंगलिश भाषा का प्रोयोग हो रहा है.. अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग अख़बार के पहेले पन्ने से ही हो रहा है.. जेसे   स्कूलों में  admission शुरू..   अब computer  पर  पढाई और भी असान.. इस तरह के वाक्य अखबारों में पड़ने को मिलते है.. चाहे अख़बार हो,, समाचार हो,, या आम बोलचाल हो सब हिंगलिश का ही प्रयोग  कर रहे है.. 
       आज कल की युवा पीढ़ी तो इसे अपना स्टाइल मानती है.. और उसी युवा पीढ़ी को प्रभावित करने के लिए इसी भाषा का प्रयोग धडड्ले  से                                                                                       लिया जा रहा है..हिंदी भाषा का प्रयोग करने वालो को या तो अनपड समझा जाता है या उन्हें अंग्रेजी न जानने वाला समझा जाता है.. अंग्रेजी के प्रयोग को तो शान समझा जाता है..
           अगर  इसी तरह  सब ने हिंदी को भुला दिया तो हिंदी को हमारी राष्ट्रीय का जो दर्जा मिला है उसका कोई महत्व नही रह जायेगा.. और कहीं हिंदी भाषा का प्रयोग इतना कम न हो जय की आने वाली पीढ़ी इसे जान भी न पाए.. इसलिए हम सभी को हिंदी का प्रयोग करना चाहिए और इसे बोलते समय गर्व महसूस करना चाहिए..


                                   हिंदी है हमारी भाषा,,
                                      जिसे माना है हमने राजभाषा..
                                



khana specilist

 विषय से तो अंदाज़ा लग ही गया होगा की हम किस की बात करने वाले है.. अरे अब भी नही समझे तो चलिए में बता दूँ की हम नमक की बात करने वाले है..जी हाँ नमक जो की खाना स्पेसिअलिस्ट है..और हमारे इस स्पेसिलिस्ट के भी तीन प्रकार है जेसे....१.. सादा नमक,, २.. कला नमक,, और ३.. सेंधा नमक..


     सब नमक का स्वाद तो नमकीन ही होता है पर सबका महत्व और  विशेषताऔ में थोड़ा फर्क है.. पहले बात करेंगे सदा नमक की  जो सबसे महतवपूर्ण और अवशक है.. सादा नमक जो हर खाने को लाजवाब व स्वदीष्ट बनाय