Wednesday, October 5, 2011

big boss season 5

बिग बॉस सीजन  ५ में एक बिकुल नयापन ही आ गया  जहाँ पहले बराबर के लड़के व महिलाये  हुआ करती थी वही इस बार सिर्फ १ आदमी *(शक्ति कपूर) बाकि सब माहिलाये ही आई है.. यह इस सीजन की  सबसे अलग बात थी .
 तथा  इस बार घर को नयापन भी दिया गया है.. और कई बड़ी हस्तीया तथा कुछ अनजाने चेहरे भी है जिन्हें हर कोई नही जानता..  शुरआती समय में तो सब एक दुसरे से बहुत अच्छे  से बात कर रहे है देखते है आगे क्या होता है.. इस बार सबसे अलग बात यानि महिलाओ के इस खेल में देखते है.. पिचली बार की तरह इस बार भी विजेता एक महिला ही होगी इस बात की पुष्टि तो हो ही गयी है.. Bigg boss 10.30 on colors....

Monday, October 3, 2011

शारुख खान सच के सुपर हीरो

1 अक्टूबर को ३ रिअलिटी शो का आखिरी मुकाबला था और तीनो कार्यकर्मो में ही जज के तौर पर शारुख खान ही आये थे .. उन्होंने ने एक ही रात में तीन विजेता घोषित किये..  स्टार प्लस  पर जस्ट डांस, कलर्स पर इंडिया गोट टलेंट और जी टीवी पर सा रे गा मा पा लिटिल चैम्प नामक सभी  कार्यकर्मो  पर बतौर स्पेशल गेस्ट शारुख खान ही आये हुए थे और साथ में उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म रा वन का भी परमोशन किया.. तथा रा वन के कई पोस्टर,  व जी वन की कॉपी का गुड्डा भी दिया बच्चो  को ..तथा  अंत में सभी विजेताओ को जीत की रकम व ट्राफी दी.. शारुख  खान ने एक साथ दो काम कर लिए अपनी नई फिल्म की  परमोशन भी और  स्पेशल गेस्ट  बनकर प्रतिभागियों का होसला भी बढाया तथा उन्हें इनाम दे कर वह वही भी लुटी.. इसे कहते है सुपर हीरो एक साथ इतने काम करने वाला.
                            

Thursday, September 8, 2011

दिल्ली के हाल बेहाल

कल सुबह सुबह दिल्ली में एक दिल दहलाने वाला हादसा हुआ .. दिल्ली  high court के सामने बम विस्फोट हुआ..
फिर रात को एक बार फिर दिल्ली पर कहर बरपा और रात करीब ११.३० बजे भूकंप जो की लगभग ६.६हेक्टर की
तेज़ी से आया  जिसने दिल्ली वासियों की नीदें ही उड़ा दी.. और लोग अपने अपने घरो से बहार निकल आये इस डर से कहीं वो भूकंप की चपेट में ना आ जाये.. यह तो दिल्ली है जहाँ हर पल नये हादसे घाटते रहते है..
चाहे वो कहर अतंकवादियो का हो या कुदरत का हो..या वो कहर सरकार  का हो .. झेलना पढता है..

                                   दिल्ली वासियों की परेशानी
                                कोई तो हल करे उनकी जिंदगानी 
                           कभी आतंकियों  से लगे डर
                      तो कभी लगे डर सरकार से

kuch

कुछ यादो से में  दूर गयी हूँ 
पर कुछ है जो भूल गयी हूँ 
नही जानती क्या पाया है
पर खोया तो  बहुत है

वो दोस्तों के साथ बीते पल 
जिन्हें  जीते थे हर पल
आज फिर शांति छा गयी
दोस्तों की याद आ गयी

वो साथ मै की  मस्ती ..
अलग ही थी हमारी  हस्ती 
पर न अब वो पल रहे ..
ना ही  वो कल रहे..

कुछ है जो बदल गया है.. 

yaad

यादो में जीने की आदत है ...
हर  लम्हे से मुझे चाहत है ....
आज फिर देखा एक सपना ...
बस  उसे  करना है अपना  ....

चाहे  कितनी आये मुश्किलें  ...
करना है बस उन्हें पार...
तभी मिलेगी नई मंजिले...
और होगी मेरी नईया पार.......


Sunday, April 24, 2011

क्यों चाहा उसने उस शिकारी को....
जिसने बिखेरा उसके संसार को....
तबाह  कर दी उसने उसकी बस्ती....
फिर भी वो चाहती उसकी हस्ती...
उसने भी सोचा कभी तो वो बदलेगा....
शायद मेरा प्यार वो समझ लेगा.....

 वो न जानती थी ....
की वो न बदलेगा ....
पर उसे भी  मिटा देगा ...
क्यों चाहा मेने उस शिकारी को..

Thursday, April 14, 2011

छोटा सा था सफ़र 
जिसमे मिला न हमसफ़र  
तड़प उठती है आज यादे 
जब याद आती है बीती बातें 
सोचा न था की कोई ऐसा होगा 
सामने प्यार और पीछे धोखा होगा....
 क्या क्या न किया सबके लिए
क्या धोखा  मिले इसलिए 
न आज तक किसी ने समझा मुझे
न जाना किसी ने मुझे 
जब भी पीछे मुढ़ के देखा
हमेशा अपने साया ही देखा

छोटा सा था सफ़र 
जिसमे मिला न कोई हमसफ़र 
 जब काम होता आते सब पास 
जब ख़तम होता तो कहते अब बस 
इस भीड़ में अकेली ही पाया खुद को
अज तक समझा न पाई खुद को...................

Monday, February 7, 2011

राष्ट्रमंडल खेलों से पहले दिल्ली कि दशा

  राष्ट्रमंडल खेलों से पहले दिल्ली कि दशा इस तरह थी जेसे मानो कोई  डूबता हुआ हो और उसे तिनके का सहारा चाहिए हो.. दिल्ली में इन खेलों का आयोजन 2010 में होना था इसकी जानकारी सरकार को लगभग 2003 से ही थी परन्तु इसको पूरी  तरह से हामी मिलने में काफी समय लग गया..और बाकी समय सरकार ने काफी समय और लगा दिया..अंतत   काम कि शुरुआत अगस्त 2007 में शुरू किया गया..और इस मार्च 2010 तक पूरा करने का समय था..परन्तु यहाँ समय पर काम ख़तम नही  हुआ समय को काफी  डेडलाइन दी गयी एक बार को दिल्ली वासिओ को डर भी लगा कि काम समय पर ख़तम नही हो पायेगा और खेलों का आयोजन नही हो पायेगा.. डेडलाइन पे  डेडलाइन मिलती गयी पर काम ने अंत तक ख़तम होने का नाम ही नही लिया.. फिर कई कामो को तोह छोड़ दिया गया जेसे कि चादनी  चौक में काफी बदलाव लाना था पर सामय कम था जिसके चलते काम को छोड़ दिया गया..कई कामो ने काफी डेडलाइन पार कि  कई बार मनमोहन सिंह ने स्टेडियम के दौरे भी किये 
          खेलों कि स्थिथि दिन पर दिन काफी ख़राब होती रही क्युकि बारिश थी जो थमने का नाम ही नही ले रही थी जिसके चलते काम को समय पर पूरा करने में और परेशानी हो रही थी.. इन खेलों के आयोजन का समारोह  जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में होना था.. इस स्टेडियम में खेलों से कुछ दिन पहेले बनाया गया एक पुल गिर गया जिसके गिर जाने से काफी बुरा असर पढ़ा लोगो ने साडी आस छोड़ दी और सोच लिया कि अब तो खेल नही हो पाएंगे परन्तु फिर जल्द ही उसकी जगह एक काम चलाऊ बना दिया गया..जिससे सब कुछ लगभग ठीक हो गया..   
         खेलों से पहेले सिर्फ स्टेडियम तेयार होने के अलावा  भी एक बड़ी  समस्या थी जो थी डेंगू जो खेलों से पहेले दिल्ली  में काफी फेली हुई थी.. बारिश ज्यादा  होने के कारण और यमुना का पानी बढने के कारण काफी पानी जमा हो गया था जिसके कारण डेंगू के फेलेने के कारण और बढ़ गये थे..और एमसीडी  ने बताया कि पानी को सूखने में लगभग एक महीने लग सकता है.. पानी सिफ्र खेल गाँव के पास ही नही जमा था बल्कि कई जगहों पे जमा था जिसके कारण यातायात भी काफी प्रभावित हो रहा था.. जिसके चलते दिल्ली के लोग और सरकार काफी चिंतित थे..कई एथलीटस ने दिल्ली के हालातो के बारे में सुन कर ही खेलों में आने को माना कर दिया..24 देशो ने भारत सरकार को  डेंगू को लेकर चिंता भी जताई और सुरक्षा कि मांग भी कि..  इन कारणों से दिल्ली के लोगो को  काफी आहात भी हुआ..
            दिल्ली में खेलों से पहेले अचानक कुछ हमले भी हुए जमा मस्जिद के पास जिसके चलते भारत सरकार पर सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठाये गये..तथा लोगो को सार्वजनिक स्थानों पर जेसे हवाई अड्डो,, बस अड्डो ,,होटलों व पर्यटन स्थलों पर सतर्क रहने को कहा गया..
         दिल्ली में खेलों के समय  
               दिल्ली कि यह हालत देख कर एक बार को तो यह लगा कि शायद खेलों का आयोजन नही हो पायेगा परन्तु समय पर सब कुछ हो गया.. खेते है न कर भला तो हो भला .. आखिर लोगो कि मेहनत रंग  लाई और एक शानदार  जशन के साथ इन खेलों का आगाज हुआ..

राष्‍ट्रमंडल खेलों के निर्माण का खर्च


खेलों कि जगह पर बढ़ता खर्च,, खर्च तो बड़ा पर फिर भी काम समय पर नए हो सका..


  • 5 स्टेडियम बनाने का बजट 250% बढ़ा 1000 करोड़ से 2460 करोड़ रुपए हुआ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 455 करोड़ रु961 करोड़ रु
  • कर्नी सिंह स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 16 करोड़ रु149 करोड़ रु..
  • इंदिरा गांधी स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 271 करोड़ रु669 करोड़ रु..
  •  श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 145                                                                                                                 करोड़ रु377 करोड़ रु..
  • ध्यानचंद स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 113 करोड़ रु302 करोड़ रु..
खेलगाव में तो बेहिसाब खर्चा हुआ और और खेल शुरू होने तक काम चलता ही रहा और शुरू होने के बाद भी कई समस्या आई जीके चलते खेलों के दोरान भी काम चलता रहा..
        इन खेलों कि खर्च कि कीमत कहीं न कहीं आम जनता       को ही चुकानी पड़ेगी..सरकार ने पहेले से ही महगाई बढाने कि सोच राखी है.. इन खर्चो को हमसे वसूलने के लिए हमे दस गुना टैक्स देकर चुकानी पड़ेगी.. यह तो वो बात हो गयी  करे कोई भरे कोई.. 

कॉमनवेल्थ गेम्स का इतिहास


कॉमनवेल्थ या राष्‍ट्रमंडल गेम एक बहुराष्ट्रीय खेल है.. राष्ट्रमंडल खेलो के निर्माण के पीछे उद्देश्य लोकतंत्र,, साक्षरता,, मानवाधिकार,, बेहतर प्रशासन,, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना होता है.. इन खेलो में कई देश एक साथ 
हिस्सा लेते हैं.. इसका आयोजन हर चार साल में एक बार होता है..
     यह खेल 1930 में हेमिल्‍टन में शुरू हुए थे.. तब से ही यह खेले जा रहे है.. तब इन खेलो का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स था.उस समय मात्र 11 देश और 400 एथलीट ही शामिल थे..1934 से 1942 तक इन खेलो का आयोजन नही हो  सका था क्युकि उस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था.. इन खेलो के 
आयोजन पर नियंत्रण का काम राष्ट्रमंडल खेल संघ संभालता है..  इसके बाद 1954 में इन खेलो का नाम ब्रिटिश एम्पायर और कॉमन वेल्थ गेम्‍स में बदल दिया गया.. इसी तरह 1970 में इसके नाम फिर बदला और ब्रिटिश कॉमन वेल्‍थ गेम्स रख दिया गया.. नाम बदलने का सिलसिला यही नही थमा एक बार फिर इसका नाम बदला गया 1978 में इसका नाम कॉमन वेल्‍थ गेम्स रख दिया गया और तब से लेकर आज तक यही नाम है..
        महारानी की बेटन रिले  
        
  

 इन खेलो में एक और खास पहलु है जो कि महारानी की बेटन रिले है..यह राष्‍ट्रमंडल खेलों की एक महान परंपरा है..जब इन खेलो कि शुरुआत तब रिले कि जगह ब्रिटिश झंडे का प्रयोग होता था.. यह झंडा इन खेलों में ब्रिटिश प्रभुसत्ता को दर्शाता था..लेकिन 1950 के बाद रिले कि शुरुआत हो गयी थी..यह रिले  लंदन के बकिंघम पैलैस से शुरू हुई थी..यह एक पारम्‍परा कि तरह है.. इसमें महारानी  
  एक सन्देश के साथ धावक( athlete) को रिले देती है..इसके बाद सभी बड़े बाबे खिलाडियों को यह बेटन दी जाती है फिर यह हर उस देश में जाती है जहाँ खेलो का आयोजन होने वाला होता है..
              
           खेल के प्रतीक
राष्‍ट्रमंडल खेलों का कोई एक प्रतीक नही होता.. इस बार के खेलो का प्रतीक था शेरा”.. जिसका तात्पर्य होता है शेर जिसे शौर्य, साहस, शक्ति और भव्‍यता की निशानी माना जाता है.. इसी शेरा ने हमारे राष्‍ट्रमंडल खेलों कि रोनक और बड़ा दी थी.. शेरा का शौर्य देख खिलाड़ियों में अच्छा प्रदर्शन करने कि भावना जाग जाती   है.. शेरा को बड़े दिल वाला माना जाता है जो सभी को “आएं और खेलें” की भावना से भर देता है.. 

       इस बार के खेलो में 17 खेल शामिल हुए थे:  तीरंदाजी, जलक्रीड़ा,, एथलेटिक्‍स,, बैडमिंटन,, मुक्‍केबाजी, साइक्लिंग्,, जिमनास्टिक्‍स,, हॉकी,, लॉनबॉल,, नेटबॉल,, रगबी 7 एस,, शूटिंग,, स्कैश,, टेबल टेनिस,, टेनिस,, भारोत्तोलन और कुश्‍ती.. इस बार के खेलो में पहली बार पेरा-खेल भी खेले गये..जो कि विकलागो के लिए थे..इसकी शुरुआत पहली बार भारत में ही हुई..

गेम्स के दौरान दिल्ली

 कॉमनवेल्थ गेम्स कि  तैयारियों ने तो थमने का नाम ही न लिया और करते करते खेलों का समय हो गया.. एथलीट्स ने लगभग 22 सितम्बर से आना शुरू कर दिया और खेलगांव में मेहमानों के आने कि शुरुआत हो गयी.. 


शुरुआत में तो कई परेशानिया जरुर आई जैसे कहीं पर कांच के 


टुकड़े मिले ,, कभी सांप मिलने कि खबर आई,, तो कभी टूटे 


बिस्तर मिलने की, मिली जिसके चलते राष्ट्रमंडल खेल संघ के 


अध्यक्ष माइक फेनेल ने खेलगांव की तैयारियों को लेकर काफी 


चिंता जताई है। इस पर उन्होंने भारत सरकार को  स्थिति में सुधार 


करने को कहा.. सिर्फ शुरू में ही इसी मुश्किलें आई जिनका 


समाधान जल्दी ही कर दिया गया.. फिर खेलगांव में कार्यक्रम शुरू हो 


गये.. जिसमे हर देश के लिए आगमन समारोह किया गया..जिसमे 


उनके देश का राष्ट्रीय  गीत गया जाता और देश का झंडा भी 


फेराया जाता.. जिसमे स्कूल के बच्चो ने नृत्य और गायन से उन 


का मनोरंजन किया..इन कार्यक्रमों में 40 स्कुलो के बच्चो ने भाग 


लिया..तथा अपने हुनर से आए हुए मेहमानों का मनोरंजन किया 


..और बच्चो ने उन्हें कई तोहफे भी दिए..खेलगांव के मेयर दलबीर 


सिंह ने हर देश को संबोधित किया तथा उनका स्वागत किया 


अपने देश में और उन्हें खेलों के लिए अच्छा प्रदर्शन के लिए 


शुभकामनाए दी .. यह कार्यक्रम 27 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक 


खेलगांव में चले .. फिर 3  अक्टूबर को खेलों आगाज  हुआ जिसमे कई 


कलाकारों ने नर्त्य  प्रस्तुत किया.. और फिर अगले दिन से खेल सही 


मायने में शुरू हुए.. और मेडलो को जीतने और इतिहास रचने  शुरू हो 


गए .. इसी तरह खेल चलते रहे..
                              इसी बीच दिल्ली में कई जगह कार्यक्रम हुए तथा 


खेलगांव में भी कई सितारों ने अपने जलवे बिखेरे जेसे पलाश सेन,, 


विशाल,,मोहित चाहन,, शिवमणि,, कई सितारों ने समा बाँधा .. जिसका 


आनंद  बहार से आए ऐथलिट ने खूब लिया.. 
                            
                 इसी तरह खेलों का दौर आगे बढता रहा और खेलों के अंत 


तक भारत ने 101 मेडल जीत कर भारत खूब गौर्वंतित किया.. तथा खेलों 


का समापन समारोह ने to काफी धूम मचाई.. जाने मने गायकों ने अपनी 


गयाकि से सबको  मनोरंजित किया .. सुनिधि चौहान ,, सोनू निगम ,, 


शान,, अरुणा  रॉय,,केलाश खेर तथा कई गायकों ने समापन समारोह इ 


चार चाँद लगाये .. इसी तरह धूम धाम से खेलों का समापन हो गया.. 


सबकी मेहनत भी रंग लायी..


                               

Wednesday, January 19, 2011

बसों में बढ़ती भीड़ के चलते बढ़ी परेशानिया

 
बसों में भीड़ से अक्सर परेशानिया होती है और सबसे ज्यादा  परेशान होती है लडकिया.. में रोज बस से ही कॉलेज आती व जाती हूँ.. हमेशा बस में चढ़ने के लिए दरवाजा पीछे से ही खुलता है .. पर वहां से लडकियों के लिए चढ़ना बेहद मुश्किल हो जाता है.. क्युकि सारे आदमियों की भीड़ लग जाती है जिससे लडकियों का चढ़ना में  मुशकिल होती  है.. कोई चालक अगर आगे का दरवाजा खोल दे तो हम लडकिया उसेमें चढ़ जाती .. नही तो वही पे खड़े रह कर  घंटो  इंतज़ार करना पढता है... जिसके चलते कई बार देरी भी हो जाती है.. पर करे भी तो  क्या अगर उस भीड़ में चढ़ भी जाए तो कई बार छेड़खानी का शिकार होना पढता है लडकियों  को.. जो कि ज्यादा बुरा है.. और अक्सर भीड़ में ऐसा होता ही है..
                          इन नई बसों के चलते और एक परेशानी सामने आयो है.. जेसा कि हम सब जानते है कि नई low  floor  बसों के दवाज़े नये ढंग के है.. कई बार तो लोग उस दवाज़े में फस जाते है.. कई बार चोट भी लग जाती है.. दरवाज़े के बीच में फस जाने से बहुत समस्या हो जाती है कई बार चालक उसे खोलता है और कई बार नही भी खोलते जिसके चलते .. लोग परेशान हो जाते है.. कई बार तो  DTC  बस  वाले बस स्टॉप  पर नही भी रोकते.. जब भीड़ ज्यादा होती है तो अक्सर वो ऐसा ही करते है.. अपनी मर्जी से करते है जो उन्हें करना होता है..  आज कल ब्लू लाइन के हटने से DTC वलोके भाव बढ़ गये है.. इन्हें रोकना आवश्यक है.. क्युकि इसके कारण आम जनता को काफी परेशानी होती है..और  इन बसों में बहुत गुटन भी होती है.. सारे खिड़की दरवाजे अगर बंद हो जाय तो लोगो का इसमें दम ही गुट जाए... कई बार नुई सुविधाऊ के आने से भी मुश्किलें बढ़ जाती है..        


                          चली है नई बसे ,, 
                            जिसमे है लोग फसे..
                                कलर है इसके हरे,, लाल,, पर्पल..
                                    और पहूचाती है लोगो को कई दुःख हर पल...
                              

लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा का एक सितारा

भारत की एक अनमोल रतन लता मंगेशकर जिनका जन्म  28  सितम्बर 1929  को हुआ था ... भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान हमारे  भारतीय सिनेमा में एक अछी गायिका के रूप में हुई है.. उनकी अपनी बहन आशा  भोंसले  भी उन्ही की तरह फिल्मो में गाती  है.. लता मंगेशकर  ने  अपने पिता दीनानाथ मगेश्कर से सीखना शुरू किया था..उन्होंने सिर्फ चार साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था..मात्र 7 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहेला संगीत  कार्यकम  प्रस्तुत किया ..13  साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया..फिर उन्होंने अपनी घर की जिम्मेदारी भी उठाई.. पिता की मृतु के कुछ दिन बाद ही उन्होंने एक मराठी फिल्म में काम किया..  1947  में उन्होंने आपकी सेवा नमक फिल्म में पहेली बार गाना गाया.. फिर धीरे धीरे उन्होंने फिल्मो में गाना गाने की लाइन लगा दी..फिर उन्होंने मजबूर,, अंदाज़,, बाजार,, बरसात और न जाने किस किस फिल्म में गाना गया.. तब से लेकर आज तक वो गाती ही आ रही है.. 82   साल की उम्र में भी उनकी आवाज बहुत ही अछी व मधुर है.. उन्होंने अपनी इसी आवाज के चलते न जाने कितने अवार्ड्स जीते है.. आज भी यह काबिले तारीफ है..इन्होने आशा भोंसले,, किशोर कुमार,,गुजर,,अनु मालिक और कई गायक व गायिका ,, के साथ गाना गया है..तथा मुझे भी लता जी बेहद पसंद है.. में इनके गाने बचपन से सुनती आ रही हूँ.. इनका देश भक्ति गीत वन्दे मातरम बेहद पसंद है.. और लता जी आज भी लोगो के दिलो में बसी हुई ह और हमेशा बसी रहेंगी.. 


लता मंगेशकर को मिले पुरस्कार

  • फिल्म फेर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994)
  • राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990)
  • महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)
  • 1969 - पद्म भूषण
  • 1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड
  • 1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार
  • 1993 - फिल्म फेर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार
  • 1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार
  • 1999 - पद्म विभूषण
  • 1999 - ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न"
  • 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार
  • 2001 - महाराष्ट्र भुषण

में चाहती हूँ की इसी तरह उन्हें पुरस्कार मिलते रहे और वो हमारे देश वासिओ के लिए गाती  रहे.. और हमे उनकी सुरीली आवाज़ सुनने का सोभाग्ये मिलता रहे...... 

Tuesday, January 18, 2011

MCdonald ki masti.......

MCdonald हम सभी इस  नाम से अच्छी  तरह परिचित है ..जी हाँ आज कल तो यहाँ युवा पीढ़ी की भीड़ सी  लगी रहती है... जिसे देखो बस MC d  कहते रहते है.. अरे आखिर यह भी तोह जान लो की इसकी शुरुआत कब हुई.. कौन था वो जिसकी वजह से हम सब को MCd मिला जहाँ जा कर हम आज कल बहुत मस्ती  करते है .. चलो तो अब में आपको यह बताती हूँ की आखिर इसकी शुरुआत केसे हुई..  दो भाई यानि की डिक और मैक मेक्डोनाल्ड जो की एह होटल चलते थे.... फिर उनकी मुलाकात रे क्राक व  से हुई जो की एक सेलसमैन  थे..फिर तीनो ने  एक साथ एक होटल में काम किया ..फिर वहां वो लोगो को  हेमबर्गर  खिलते थे और साफ़ सफाई करते थे..   फिर एक दिन अचानक यह सब देख कर रे क्राक के मन में विचार आया की क्यों न ऐसा होटल पुरे अमेरिका में खोला जाये .. उन्होंने यह बात दोनों भाईयो को बताई पर इतना केसे होगा यह सब सोच के वो चुप रहे .. पर रे क्राक ने इस बात को उन दोनों को समझाया  और 1961 MCdonald के सरे अधिकार 2 .7  मिलिओं में खरीद लिए .. फिर क्या था उन्होंने MCdonald में अपने तरीके से काम किया और पूरी अमेरिका में लोगो को इसका शौक़ीन बना दिया.. पर इन्होने हमेशा सफाई का खास ध्यान  रखा .. सिर्फ 7 सालो में इन्होने अमेरिका में 1000  MCdonald खोल दिए...  और धीरे धीरे यह अमेरिका से बहार निकला और कई देशो में छा गया .. भारत,, चीन ,,ऑस्ट्रेलिया और अन्य कई देशो में फ़ेल गया .. 1984   में रे  क्राक की मृत्यु हो गयी पर उसके बाद भी यह चलता रहा और  कई जगह फेलता चला गया ..
                 आज तो दिल्ली में ही लगभग हर  कालोनी में एक न एक म्च्दोनाल्ड है.. जिसमे युवौ की भीड़ लगी रहती है.. बच्चे बूढ़े सभी इस बेहद पसंद करते है.. इसके दाम भी सबके बजट में ही आ जाते है.. और साफ़ सफाई के मामले में भी यह बहुत ही अच्छा  है..  तथा इसके दीवाने दिन पर दिन बड़ते जा रहे है .. और इसमें तो कई चीजे मिलने लग गयी है.. कोल्ड्रिंक,, बरगर,, MCpuf ,, ice cream ,, french fries ,, और न जाने क्या क्या मिलने लगा है.. कितने लोग यहाँ अपना जन्मदिन मनाते है दोस्तों को पार्टी देते है.... अच्छा ही हुआ की रे चुप नही बेठे और अपनी सोच को आगे बढाया नही तो MCdonald ही न होता .. मुझे तो यह सोच के ही अजीब लग रहा है अगर वो अपनी सोच पर कायम नही नोट तो क्या होता.....