Monday, February 7, 2011

राष्ट्रमंडल खेलों से पहले दिल्ली कि दशा

  राष्ट्रमंडल खेलों से पहले दिल्ली कि दशा इस तरह थी जेसे मानो कोई  डूबता हुआ हो और उसे तिनके का सहारा चाहिए हो.. दिल्ली में इन खेलों का आयोजन 2010 में होना था इसकी जानकारी सरकार को लगभग 2003 से ही थी परन्तु इसको पूरी  तरह से हामी मिलने में काफी समय लग गया..और बाकी समय सरकार ने काफी समय और लगा दिया..अंतत   काम कि शुरुआत अगस्त 2007 में शुरू किया गया..और इस मार्च 2010 तक पूरा करने का समय था..परन्तु यहाँ समय पर काम ख़तम नही  हुआ समय को काफी  डेडलाइन दी गयी एक बार को दिल्ली वासिओ को डर भी लगा कि काम समय पर ख़तम नही हो पायेगा और खेलों का आयोजन नही हो पायेगा.. डेडलाइन पे  डेडलाइन मिलती गयी पर काम ने अंत तक ख़तम होने का नाम ही नही लिया.. फिर कई कामो को तोह छोड़ दिया गया जेसे कि चादनी  चौक में काफी बदलाव लाना था पर सामय कम था जिसके चलते काम को छोड़ दिया गया..कई कामो ने काफी डेडलाइन पार कि  कई बार मनमोहन सिंह ने स्टेडियम के दौरे भी किये 
          खेलों कि स्थिथि दिन पर दिन काफी ख़राब होती रही क्युकि बारिश थी जो थमने का नाम ही नही ले रही थी जिसके चलते काम को समय पर पूरा करने में और परेशानी हो रही थी.. इन खेलों के आयोजन का समारोह  जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में होना था.. इस स्टेडियम में खेलों से कुछ दिन पहेले बनाया गया एक पुल गिर गया जिसके गिर जाने से काफी बुरा असर पढ़ा लोगो ने साडी आस छोड़ दी और सोच लिया कि अब तो खेल नही हो पाएंगे परन्तु फिर जल्द ही उसकी जगह एक काम चलाऊ बना दिया गया..जिससे सब कुछ लगभग ठीक हो गया..   
         खेलों से पहेले सिर्फ स्टेडियम तेयार होने के अलावा  भी एक बड़ी  समस्या थी जो थी डेंगू जो खेलों से पहेले दिल्ली  में काफी फेली हुई थी.. बारिश ज्यादा  होने के कारण और यमुना का पानी बढने के कारण काफी पानी जमा हो गया था जिसके कारण डेंगू के फेलेने के कारण और बढ़ गये थे..और एमसीडी  ने बताया कि पानी को सूखने में लगभग एक महीने लग सकता है.. पानी सिफ्र खेल गाँव के पास ही नही जमा था बल्कि कई जगहों पे जमा था जिसके कारण यातायात भी काफी प्रभावित हो रहा था.. जिसके चलते दिल्ली के लोग और सरकार काफी चिंतित थे..कई एथलीटस ने दिल्ली के हालातो के बारे में सुन कर ही खेलों में आने को माना कर दिया..24 देशो ने भारत सरकार को  डेंगू को लेकर चिंता भी जताई और सुरक्षा कि मांग भी कि..  इन कारणों से दिल्ली के लोगो को  काफी आहात भी हुआ..
            दिल्ली में खेलों से पहेले अचानक कुछ हमले भी हुए जमा मस्जिद के पास जिसके चलते भारत सरकार पर सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठाये गये..तथा लोगो को सार्वजनिक स्थानों पर जेसे हवाई अड्डो,, बस अड्डो ,,होटलों व पर्यटन स्थलों पर सतर्क रहने को कहा गया..
         दिल्ली में खेलों के समय  
               दिल्ली कि यह हालत देख कर एक बार को तो यह लगा कि शायद खेलों का आयोजन नही हो पायेगा परन्तु समय पर सब कुछ हो गया.. खेते है न कर भला तो हो भला .. आखिर लोगो कि मेहनत रंग  लाई और एक शानदार  जशन के साथ इन खेलों का आगाज हुआ..

राष्‍ट्रमंडल खेलों के निर्माण का खर्च


खेलों कि जगह पर बढ़ता खर्च,, खर्च तो बड़ा पर फिर भी काम समय पर नए हो सका..


  • 5 स्टेडियम बनाने का बजट 250% बढ़ा 1000 करोड़ से 2460 करोड़ रुपए हुआ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 455 करोड़ रु961 करोड़ रु
  • कर्नी सिंह स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 16 करोड़ रु149 करोड़ रु..
  • इंदिरा गांधी स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 271 करोड़ रु669 करोड़ रु..
  •  श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 145                                                                                                                 करोड़ रु377 करोड़ रु..
  • ध्यानचंद स्टेडियम प्रस्तावित बजटखर्च हुआ 113 करोड़ रु302 करोड़ रु..
खेलगाव में तो बेहिसाब खर्चा हुआ और और खेल शुरू होने तक काम चलता ही रहा और शुरू होने के बाद भी कई समस्या आई जीके चलते खेलों के दोरान भी काम चलता रहा..
        इन खेलों कि खर्च कि कीमत कहीं न कहीं आम जनता       को ही चुकानी पड़ेगी..सरकार ने पहेले से ही महगाई बढाने कि सोच राखी है.. इन खर्चो को हमसे वसूलने के लिए हमे दस गुना टैक्स देकर चुकानी पड़ेगी.. यह तो वो बात हो गयी  करे कोई भरे कोई.. 

कॉमनवेल्थ गेम्स का इतिहास


कॉमनवेल्थ या राष्‍ट्रमंडल गेम एक बहुराष्ट्रीय खेल है.. राष्ट्रमंडल खेलो के निर्माण के पीछे उद्देश्य लोकतंत्र,, साक्षरता,, मानवाधिकार,, बेहतर प्रशासन,, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना होता है.. इन खेलो में कई देश एक साथ 
हिस्सा लेते हैं.. इसका आयोजन हर चार साल में एक बार होता है..
     यह खेल 1930 में हेमिल्‍टन में शुरू हुए थे.. तब से ही यह खेले जा रहे है.. तब इन खेलो का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स था.उस समय मात्र 11 देश और 400 एथलीट ही शामिल थे..1934 से 1942 तक इन खेलो का आयोजन नही हो  सका था क्युकि उस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था.. इन खेलो के 
आयोजन पर नियंत्रण का काम राष्ट्रमंडल खेल संघ संभालता है..  इसके बाद 1954 में इन खेलो का नाम ब्रिटिश एम्पायर और कॉमन वेल्थ गेम्‍स में बदल दिया गया.. इसी तरह 1970 में इसके नाम फिर बदला और ब्रिटिश कॉमन वेल्‍थ गेम्स रख दिया गया.. नाम बदलने का सिलसिला यही नही थमा एक बार फिर इसका नाम बदला गया 1978 में इसका नाम कॉमन वेल्‍थ गेम्स रख दिया गया और तब से लेकर आज तक यही नाम है..
        महारानी की बेटन रिले  
        
  

 इन खेलो में एक और खास पहलु है जो कि महारानी की बेटन रिले है..यह राष्‍ट्रमंडल खेलों की एक महान परंपरा है..जब इन खेलो कि शुरुआत तब रिले कि जगह ब्रिटिश झंडे का प्रयोग होता था.. यह झंडा इन खेलों में ब्रिटिश प्रभुसत्ता को दर्शाता था..लेकिन 1950 के बाद रिले कि शुरुआत हो गयी थी..यह रिले  लंदन के बकिंघम पैलैस से शुरू हुई थी..यह एक पारम्‍परा कि तरह है.. इसमें महारानी  
  एक सन्देश के साथ धावक( athlete) को रिले देती है..इसके बाद सभी बड़े बाबे खिलाडियों को यह बेटन दी जाती है फिर यह हर उस देश में जाती है जहाँ खेलो का आयोजन होने वाला होता है..
              
           खेल के प्रतीक
राष्‍ट्रमंडल खेलों का कोई एक प्रतीक नही होता.. इस बार के खेलो का प्रतीक था शेरा”.. जिसका तात्पर्य होता है शेर जिसे शौर्य, साहस, शक्ति और भव्‍यता की निशानी माना जाता है.. इसी शेरा ने हमारे राष्‍ट्रमंडल खेलों कि रोनक और बड़ा दी थी.. शेरा का शौर्य देख खिलाड़ियों में अच्छा प्रदर्शन करने कि भावना जाग जाती   है.. शेरा को बड़े दिल वाला माना जाता है जो सभी को “आएं और खेलें” की भावना से भर देता है.. 

       इस बार के खेलो में 17 खेल शामिल हुए थे:  तीरंदाजी, जलक्रीड़ा,, एथलेटिक्‍स,, बैडमिंटन,, मुक्‍केबाजी, साइक्लिंग्,, जिमनास्टिक्‍स,, हॉकी,, लॉनबॉल,, नेटबॉल,, रगबी 7 एस,, शूटिंग,, स्कैश,, टेबल टेनिस,, टेनिस,, भारोत्तोलन और कुश्‍ती.. इस बार के खेलो में पहली बार पेरा-खेल भी खेले गये..जो कि विकलागो के लिए थे..इसकी शुरुआत पहली बार भारत में ही हुई..

गेम्स के दौरान दिल्ली

 कॉमनवेल्थ गेम्स कि  तैयारियों ने तो थमने का नाम ही न लिया और करते करते खेलों का समय हो गया.. एथलीट्स ने लगभग 22 सितम्बर से आना शुरू कर दिया और खेलगांव में मेहमानों के आने कि शुरुआत हो गयी.. 


शुरुआत में तो कई परेशानिया जरुर आई जैसे कहीं पर कांच के 


टुकड़े मिले ,, कभी सांप मिलने कि खबर आई,, तो कभी टूटे 


बिस्तर मिलने की, मिली जिसके चलते राष्ट्रमंडल खेल संघ के 


अध्यक्ष माइक फेनेल ने खेलगांव की तैयारियों को लेकर काफी 


चिंता जताई है। इस पर उन्होंने भारत सरकार को  स्थिति में सुधार 


करने को कहा.. सिर्फ शुरू में ही इसी मुश्किलें आई जिनका 


समाधान जल्दी ही कर दिया गया.. फिर खेलगांव में कार्यक्रम शुरू हो 


गये.. जिसमे हर देश के लिए आगमन समारोह किया गया..जिसमे 


उनके देश का राष्ट्रीय  गीत गया जाता और देश का झंडा भी 


फेराया जाता.. जिसमे स्कूल के बच्चो ने नृत्य और गायन से उन 


का मनोरंजन किया..इन कार्यक्रमों में 40 स्कुलो के बच्चो ने भाग 


लिया..तथा अपने हुनर से आए हुए मेहमानों का मनोरंजन किया 


..और बच्चो ने उन्हें कई तोहफे भी दिए..खेलगांव के मेयर दलबीर 


सिंह ने हर देश को संबोधित किया तथा उनका स्वागत किया 


अपने देश में और उन्हें खेलों के लिए अच्छा प्रदर्शन के लिए 


शुभकामनाए दी .. यह कार्यक्रम 27 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक 


खेलगांव में चले .. फिर 3  अक्टूबर को खेलों आगाज  हुआ जिसमे कई 


कलाकारों ने नर्त्य  प्रस्तुत किया.. और फिर अगले दिन से खेल सही 


मायने में शुरू हुए.. और मेडलो को जीतने और इतिहास रचने  शुरू हो 


गए .. इसी तरह खेल चलते रहे..
                              इसी बीच दिल्ली में कई जगह कार्यक्रम हुए तथा 


खेलगांव में भी कई सितारों ने अपने जलवे बिखेरे जेसे पलाश सेन,, 


विशाल,,मोहित चाहन,, शिवमणि,, कई सितारों ने समा बाँधा .. जिसका 


आनंद  बहार से आए ऐथलिट ने खूब लिया.. 
                            
                 इसी तरह खेलों का दौर आगे बढता रहा और खेलों के अंत 


तक भारत ने 101 मेडल जीत कर भारत खूब गौर्वंतित किया.. तथा खेलों 


का समापन समारोह ने to काफी धूम मचाई.. जाने मने गायकों ने अपनी 


गयाकि से सबको  मनोरंजित किया .. सुनिधि चौहान ,, सोनू निगम ,, 


शान,, अरुणा  रॉय,,केलाश खेर तथा कई गायकों ने समापन समारोह इ 


चार चाँद लगाये .. इसी तरह धूम धाम से खेलों का समापन हो गया.. 


सबकी मेहनत भी रंग लायी..